बाहरी चकाचौंध से उबकर
बाहरी चकाचौंध से उबकर
जब झांका मन भीतर तो
सूरज क्या, चाँद की शीतलता से भी पिघला हूँ
खाली हृदय, भारी मन, जुगनू सा प्रण लिये
अंतःकरण के अन्धकार से आजादी हेतु
स्वयं से स्वयं में स्वयं को खोजने निकला हूँ!
बाहरी चकाचौंध से उबकर
जब झांका मन भीतर तो
सूरज क्या, चाँद की शीतलता से भी पिघला हूँ
खाली हृदय, भारी मन, जुगनू सा प्रण लिये
अंतःकरण के अन्धकार से आजादी हेतु
स्वयं से स्वयं में स्वयं को खोजने निकला हूँ!