बाल शोषण एक गंभीर समस्या
विषय- “बाल शोषण एक गंभीर समस्या
बाल यौन शोषण समाज की सबसे गंभीर समस्या बनती जा रही है।आज जहाँ देखो यह समस्या मुँह बाये खड़ी हुई हैं।
यौन शोषण की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। हर दी नई नई घटनाये सुनने को मिलती हैं।इस प्रकार की घटनाओं के विभिन्न आयाम हैं जिसके कारण समाज इसका सामना करने में असमर्थ है। बाल यौन शोषण न केवल पीड़ित बच्चे पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ता है बल्कि पूरे समाज को भी प्रभावित करता है। आज भी इन मामलों को अनदेखा किया जाता हैं।भारत में बाल यौन शोषण के बहुत से मामलों को दर्ज नहीं किया जाता, क्योंकि ऐसे मामलों को सार्वजनिक करने पर परिवार खुद को असहज महसूस करता है। या यूं कहें कि ज्यादा मामलो को डरा कर चुप कर दिया जाता हैं।इसके बारे में एक सामान्य धारणा है कि, “ऐसी बातें घर की चार-दिवारी के अन्दर ही रहनी चाहिये।” बाल यौन शोषण की बात के सार्वजनिक हो जाने पर परिवार की गरिमा के खराब होने के बारे में लगातार भय बना रहता है।माता पिता नही चाहते कि किसी भी तरह की कोई कार्यवाही की जाए। बहुत बार उनको डरा भी दिया जाता हैं।ऐसे में बाल संरक्षण आयोगों की मानें तो बच्चे की पहचान का खतरा बना रहता है।माता पिता नही चाहते कि किसी भी सूरत में बात समाज के सामने आए।
यह समस्या १९७० और १९८०के दशक के बाद एक सार्वजनिक मुद्दा बन गयी थी। सिर्फ लड़कियों ही नहीं यह उन लड़कों के मामलों में भी होता है जो स्वतंत्र रूप से अपने माता-पिता के साथ वर्जित मान लिए गए विषय पर बात करने के लिए सक्षम नहीं हैं। ये पूरे समाज की मानसिकता है जो बुरे लोगों को प्रोत्साहित करने का काम करती है। कुछ लोग मासूम बच्चे के दिमाग में बैठे डर का लाभ उठाते हैं, वो बेचारा मासूम बच्चा/बच्ची जिसे यौन उत्पीड़न के बारे में कोई जानकारी नहीं होती वो दिन प्रतिदिन इस का शिकार होता है।लड़के भी इस प्रकार के मामलों में फंस जाते है वे भी शोषण का शिकार होते हैं।आज ये समस्या बहुत गंभीर रूप ले रही हैं।
बाल यौन शोषण एक अपराध है जिसे अनदेखा किया जाता है, क्योंकि लोग इस पर बात करने से बचते हैं। इस विषय के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के प्रयासों के द्वारा इस प्रकार की घटनाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जब तक डर नही होगा तब तक यूँ ही लोग फायदा उठाते रहेंगे।डर के लिए सख्त से सख्त कानून की जरूरत है।अपराधियों के मन में डर डाले जाने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब लोग इसका सामना करने के लिये तैयार हों। अब समय आ गया है कि माता-पिता द्वारा इस तरह के मुद्दों के बारे में अपने बच्चों को जागरूक बनाने के लिये इस विषय पर विचार-विमर्श किया जाये। शैक्षिक संस्थानों को भी जागरूकता कैंप आयोजित करने चाहिये जो सेक्सुएलिटी (लैंगिकता) विषय पर सटीक जानकारी प्रदान करने में सहायक होंगे।मैं अपने स्कूल में देखती हूं कि हम इस विषय पर बच्चों को सतर्क करते हैं।मैं खुल कर बच्चों से बात करती हूँ।उनके लिए क्या ठीक है क्या गलत हैं ये सब बताती हूँ।सभी स्कूलों में ये शिक्षा जरूरी होनी चाहिए।मैं ऊना सौभाग्य मानती हूँ कि मैं ऐसे स्कूल से जुड़ी हूँ जहाँ हम बच्चों को नियमित तौर पर उनको ये सब बताते हैं। यद्यपि इस दिशा में कुछ प्रयास फिल्मों के माध्यम से भी किये गये जैसे: स्लम डॉग मिलेनियर, जिसमें बाल वैश्यावृति को पेश किया गया है, इसमें और अधिक प्रयासों को करने की आवश्यकता है। ये सुनिश्चित करने के लिये कि अपराधी, अपराध के भारी दंड के बिना छूट न जायें इसके लिये कानूनों और धाराओं को और अधिक कड़ा करना होगा। अन्त में, बाल यौन शोषण के मुद्दे से और अधिक अनदेखे मुद्दे की तरह व्यवहार न किया जाये क्योंकि ये समाज के कामकाज के तरीके को प्रभावी रूप में प्रभावित करता है और युवा लोगों के मन पर गहरा प्रभाव डालता है।
आज भी, अधिकतर अपराधी, पीड़ित का कोई जानकार और पीड़ित के परिवार का जानकार या पीड़ित का कोई करीबी ही होता है। इस निकटता के कारण ही अपराधी अनुचित लाभ उठाता है, क्योंकि वो जानता है कि वो किसी भी तरह के विरोध से बचने में सक्षम है, ये एक पारिवारिक विषय माना जाता है और इसके बाद अपराधी द्वारा बार-बार पीड़ित को प्रताड़ित करने का रूप ले लेता है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण हाल ही में आयी हिन्दी फिल्म ”हाईवे” है जिसमें साफ़ तौर पर दिखाया गया हैं कि कैसे और किन हालातों में बच्चे अपना बचपन खो जाते हैं और बचपन अमीरी गरीबी नहीं देखता और ना ही ऐसे होने वाले अपराध कोई स्टेटस देखते हैं। ये छेड़छाड़ की घटना बच्चे के मानसिक विकास पर बुरा प्रभाव डालती है। इसके प्रभावों में अवसाद, अनिद्रा, भूख ना लगना, डर आदि भयानक लक्षण शामिल हैं।
यद्यपि, भारतीय दंड संहिता, १८६०, महिलाओं के खिलाफ होने वाले बहुत प्रकार के यौन अपराधों से निपटने के लिये प्रावधान (जैसे: धारा ३७६, ३५४ आदि) प्रदान करती है और महिला या पुरुष दोनों के खिलाफ किसी भी प्रकार के अप्राकृतिक यौन संबंध के लिये धारा ३७७ प्रदान करती है, लेकिन दोनों ही लिंगों के बच्चों (लड़का/लड़की) के साथ होने वाले किसी प्रकार के यौन शोषण या उत्पीड़न के लिये कोई विशेष वैधानिक प्रावधान नहीं है। इस कारण, वर्ष २०१२ में संसद ने यौन (लैंगिक) अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, २०१२ के जरिये इस सामाजिक बुराई से दोनों लिंगों के बच्चों की रक्षा करने और अपराधियों को दंडित करने के लिए एक विशेष अधिनियम बनाया। इस अधिनियम से पहले, गोवा बाल अधिनियम, २००३ के अन्तर्गत व्यवहारिकता में कार्य लिया जाता था। इस नए अधिनियम में बच्चों के खिलाफ बेशर्मी या छेड़छाड़ के कृत्यों का अपराधीकरण किया गया है।
इस तरह की कार्रवाइयों को रोकने के लिए आप निम्नलिखित कदम उठाकर दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू करने में मदद कर सकते हैं। पुलिस या ‘चाइल्ड लाइन’ को सूचित कर, यह सुनिश्चित कर कि ‘चाइल्ड लाइन’ बच्चों को उचित सलाह तथा कानूनी सेवाएँ उपलब्ध कराती है, इसके लिए जनसमुदाय का समर्थन प्राप्त करना, अंतिम उपाय के रूप में प्रेस या मीडिया को सूचित करना, अपने कानून के बारे में जानकारी प्राप्त कर, सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि आधारभूत कानून एवं उस अधिकार के बारे में जानकारी प्राप्त करें जिनकी रक्षा की जानी है। यदि आप बाल अधिकार तथा उसकी संरक्षा के लिए बने कानून से परिचित हैं तभी आप बच्चे या उसके माँ-बाप/ संरक्षक/जनसमुदाय को कानूनी कारवाई के लिए तैयार कर सकते हैं। कभी-कभार पुलिस या प्रशासन भी इस तरह के मामलों में बाधा उत्पन्न करते हैं। कानून के बारे में उचित जानकारी मामले को अच्छी तरह से हल करने में आपको सशक्त बनाता है।
१-शारीरिक शोषणः शारीरिक बाल शोषण की स्थिति तब होती है जब किसी बच्चे को शारीरिक तौर पर जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जाता है।
२-यौन शोषणः यौन शोषण की स्थिति तब होती है जब किसी बच्चे के साथ शारीरिक तौर पर दुर्व्यवहार, यौन रिश्ता, सेक्स, ओरल सेक्स, गुप्तांओं का गलत तरीके से छूना या चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जाती है।
३-भावनात्मक शोषणः भावनात्मक बाल दुर्व्यवहार का अर्थ है बच्चे के आत्मसम्मान या भावनात्मक स्थिति को नुकसान पहुंचाना। इसमें मौखिक और भावनात्मक हमले शामिल हो सकते हैं- जैसे बच्चे को जबरन शांत करना, उसे दूसरे बच्चों से एकदम अलग रखना, उसे अनदेखा करना या अस्वीकार करना।
निजी-स्तर पर बाल यौन शोषण की पहचान और उसका सामना
बच्चे की हर बात ध्यान से सुनें और उसकी हर बात पर गौर करें,
उनकी बातों पर भरोसा करें| उनको ऐसा माहौल दें जिसमें वो खुलकर अपनी बात रख सकें,
उन्हें भरोसा दिलाये कि वे साहसी हैं और जो उनके साथ हुआ है उसमें उनका कोई दोष नहीं थाlबाल शोषण की समस्या विकराल रूप ले चुकी हैं. यह केवल देश नहीं बल्कि विदेशों में भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं. कहते हैं समाज में व्याप्त हर बुराई के पीछे का कारण शिक्षा का अभाव होता हैं, लेकिन पुराने जमाने से अब तक शिक्षा का स्तर बढ़ा है, लेकिन उसके साथ ही इस बाल शोषण ने भी अपने पैर तेजी से फैलाये हैं. यह आधुनिक समाज की अति गंभीर बीमारी हैं, जिसकी गिरफ्त में मासूमों की खुशियाँ, उनकी सुरक्षा हैं. क्या हैं बाल शोषण? यह कितने प्रकार का होता हैं और इससे कैसे अपने बच्चो को बचाया जा सकता हैं।
जब बच्चो को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता हैं, उसे बाल शोषण कहते हैं. इसके तहत नाबालिक अर्थात १८ वर्ष से कम की आयु के बच्चे शामिल होते हैं. जब भी बच्चे डर जाये, उन्हे चोट पहुंचाई जाये इस तरह की घटना बाल शोषण के दायरे में आती हैं.
बड़ी- बड़ी रिसर्च और अनुभव यह कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले हमेशा परिवार के करीबी होते हैं, जिनका घर में आना जाना बना रहता हैं. और उनकी दोस्ती बच्चो से जल्दी हो जाती हैं. वे बच्चो के साथ इतने खुश दिखाई देते हैं कि समझा ही नहीं जा सकता कि उनके इरादे इतने घिनौने हैं. आमतौर पर ये घर के नौकर होते हैं, क्यूंकि आज के व्यस्त जमाने में बच्चे नौकरों के साथ ज्यादा समय गुजारते हैं और कई तरह के केस नौकरों के खिलाफ ही सुनने में आते हैं.
बाल शोषण के प्रकार क्या क्या हैं?
मानसिक प्रताड़ना : जब किसी बच्चे से ऐसी बाते की जाती हैं जो उन्हे मानसिक तनाव देता हैं या उन्हे डराता हैं, वे सभी मानसिक प्रताड़ना के अंतर्गत शामिल हैं. बच्चों से अनुचित बाते करना, उन्हे किसी चीज से डराना, उनके मन में भय पैदा करना ये सभी अपराध हैं, जिनके खिलाफ आवाज उठाई जा सकती हैं.
शारीरिक प्रताड़ना : जब किसी बच्चे को अनुचित तरीके से अनुचित जगहों पर छुआ जाता हैं, उन्हे तकलीफ पहुँचाई जाती हैं या उन्हे मारा जाता हैं, वे सभी शारीरिक प्रताड़ना में शामिल हैं. इस दिशा में बच्चो को शिक्षित करना आवश्यक हैं, ताकि वे इस शोषण को समझ सके और खुलकर अपने माता- पिता अथवा पालकों से कह सके।
बच्चो पर इसका प्रभाव :-
जो बच्चे इस शोषण से ग्रसित होते हैं, वो या तो बहुत डरे हुये होते हैं या बहुत ज्यादा गुस्सेल और चिड़चिड़े हो जाते हैं.
कुछ बच्चे बहुत ही शर्मीले हो जाते हैं, किसी से बात करने में खुद को असहज महसूस करते हैं, कम बोलते हैं.
कई बार बच्चे बहुत बत्तमीज हो जाते हैं, उन्हे घर के लोगों से भी एक अजीब सा व्यवहार करता देखा जाता हैं.
बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. मानसिक रोगी की तरह बर्ताव करने लगते हैं. अत्यधिक सोने अथवा खाने भी लगते हैं.
ऐसे बच्चे आसानी से आपराधिक गतिविधियों में भी शामिल हो सकते हैं जैसे चोरी करना, मारना पीटना अथवा ड्रग्स आदि का सेवन करने लगना.
वे सभी कारण जो बच्चे को दूसरे बच्चो से अलग दिखाये, उनके ऐसे बर्ताव के पीछे बाल शोषण एक अपराध शामिल हो सकता हैं. इसलिए सभी को इस दिशा में कार्य करने की जरूरत हैं, ताकि मौसम ऐसे घृणित अपराध का शिकार ना हो.
बाल शोषण रोकने के उपाय
बाल शोषण को रोकने के लिए जरूरी हैं कि बच्चों को सही और गलत का ज्ञान दिया जाये. उनसे इस विषय में खुलकर बात की जाये, ताकि वे इस शोषण को समझ सके और अपनों से कह सके.
बच्चो को यह ज्ञान होना बहुत आवश्यक है, कि वो अपने और पराये के अंतर को समझ सके. वैसे यह बहुत मुश्किल हैं क्यूंकी वयस्क भी कौन अपना कौन पराया का हिसाब सही नहीं कर सकता, तो बच्चे तो ना समझ होते हैं. पर फिर भी उन्हे कुछ हद तक ज्ञान देना आवश्यक हैं.
बच्चो को शारीरक शोषण को समझने के लिए अच्छे और बुरे टच को महसूस करने का ज्ञान दिया जाना जरूरी हैं.
बच्चो की बातों को छिपाने के बजाय उसका खुलकर विरोध करे, इससे आपका बच्चा तो आत्मविश्वास महसूस करेगा ही समाज का हर व्यक्ति इससे शिक्षित होगा और अपराधी अपराध करने से पहले कई बार सोचेगा.
बाल शोषण से निपटने के लिए आज कल कई तरह की क्लासेस भी चलाई जा रही हैं जहां बच्चो को इस बात की समझ दी जाती हैं और माता-पिता को भी सिखाया जाता हैं कैसे बच्चो को खेल –खेल में यह सब सिखाये. इसलिए बिना शर्म किए ऐसी क्लासेस का हिस्सा बने और अपने बच्चो को भी वहाँ भेजे.
बाल शोषण से ग्रसित बच्चो को कैसे उभारे ?
दुर्भाग्यवश बच्चा इस बाल शोषण का शिकार हो चुका हैं तो सबसे पहले अपराधी को सजा दिलवाये और उसकी कानूनी कार्यवाही करें. बच्चे से अच्छे से बात करने और उसे यकीन दिलवाये, कि वो अब सुरक्षित हैं, उससे माफी मांगे कि आपके होते हुये उसके साथ यह हुआ. यह सभी जल्द से जल्द खतम कर उसे एक नया और अच्छा वातावरण दे. ध्यान रहे बच्चा इस घटना से सीख तो ले, लेकिन यह घटना उसके मन और दिमाग कर कब्जा ना करले. जरूरी हैं कि बच्चा इन बातों के भय से बाहर निकल कर नॉर्मल बच्चों की तरह जीवन जिये. और इसके लिये आपको अपने व्यवहार में सावधानी रखनी होगी, क्यूंकि एक बार अपराध होने के बाद आप एक्स्ट्रा केयर करेंगे और कहीं यही केयर ही बच्चे को वो घटना भूलने ना दे और वो अपने आपको दूसरे बच्चो से अलग समझने लगे. इसके लिये जरूरी हैं कि आप बच्चे को पूरी आजादी के साथ जीवन जीने दे.
बाल शोषण के लिए बने कानून
हमारे देश में महिलाओं के शोषण के लिए बहुत से कानून बनाये जा चुके थे, लेकिन बच्चे जो कि १८ से कम आयु के हैं उनके शोषण के विरुद्ध देश में कोई बड़ा कानून नहीं था. बहुत सी वारदातों एवं घटनाओं से स्पष्ट हुआ, कि बाल शोषण अपराध भी दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा हैं और इनके पीछे ज़्यादातर करीबी लोगो का होना पाया गया हैं, इस कारण २०१२ में बाल शोषण के खिलाफ बड़ा कानून बनाया गया, जिसे प्रोटेक्टशन ऑफ चिल्ड्रन अगेन्स्ट सेक्सुयल ऑफेंस बिल २०११ के रूप में सदन में पारित किया गया. बाद में इसे २२ मई २०१२को एक एक्ट बनाया गया.
बचपन जितना बेहतर होगा भविष्य उतना ही उज्जवल बनेगा अतः बाल शोषण जैसे अपराध बच्चो की नींव को कमजोर करते हैं.
बेहतर समाज बेहतर बच्चो से बनता हैं अतः उन्हे स्वस्थ बचपन देना बुजुर्गों का कर्तव्य हैं.
बाल शोषण अपराध एक ऐसा अपराध हैं जो भविष्य को अंधकारमय कर सकता हैं. इसके लिए आवाज उठाना अति महत्वपूर्ण हैं। चंद पंक्तियों के माद्यम से वेदना प्रकट करती हूँ
माँ देख आज भी रात अंधेरे में,
वो आया हैं मुझे पकड़ने
चौंककर उठ जाती हूं मैं उसके डर से
बोलते-बोलते अचानक यूंही मैं।
चुप सी मैं हो जाती हूं माँ मैं
बस समाज के डर से यूं ही
खुद को ना बचा सकी तो माँ
किसी और का बचपन ही बचाऊं मैं।
नहीं है परवाह अब भले ही मुझे मेरी,
गलत ही क्यों ना ठहराऊं माँ मैं
पर अब चुप ना रहूंगी डर से मैं
चाहे मुझे मौत ही क्यो न आ जाये।
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद