बाल मजदूरीः बालशोषण
बाल मज़दूरी : बाल शोषण
हे विधाता!
कैसा है ये विधान
तुम तो हो करुणानिधान
कैसे हैं ये बच्चे गरीब
जिन्हें होता नहीं
बचपन भी नसीब।
नन्हे कोमल हाथों पाषाण हृदय
पिसवा रहा बचपन,
पीस रहा वह मेंहदी या
अगरबत्ती खुशबूदार;
खुशबुएँ तो मगर माँज रहीं
देखो ढाबों में बर्तन।
भरता बारूद संग
वो पटाखों में बचपन
ढो रहीं नन्हीं कोंपलें
बढ़ती हवाओं का भार
नीरस होते मन की उलझन
ढोता बोझ ये छुटपन
मुरझाईं कोंपलें
कैसे खिलें अब कली-कुसुम।
शोषण के कर्तन
अब कर्ण नहीं सुनते
ये नन्हें मासूम बच्चे,
कभी स्वप्न नहीं बुनते।
दो जून रोटी की भी
कैसी दुर्दिन की लाचारी है,
बाल पीढ़ी तो बस सुदिन की
ममता व शिक्षा की अधिकारी है।
गर हुए जो वे अनाथ हैं,
मानवता क्या अनाथ हुई?
तुम न रहे तो तुम्हारी ममता
क्या सड़कों के साथ हुई??
सोचो, कल का क्या सोचा है,
बोया बीज किसने सींचा है?
उजड़ी मासूम बगिया के
जिम्मेदार नहीं केवल माँ-बाप,
समाज भी थोड़ा-थोड़ा है;
करुणा का शज़र हमने
कहाँ अंतः पटल पर रोपा है।
हो बाल श्रमिकहीन
हर गाँव, हर शहर
करुणा का दीप जले
बस डगर-दर-डगर।।
© डॉ. बीना