सुन्दर घर
घर मेरा है इतना सुंदर,
रहते इसके पेड़ पर बंदर ।
पंक्ति लगाकर चलती चींटी,
अनुशासन सिखलाती फिर भी ।
चूहा मेरे घर के बिल में,
अनाज खाता कुतर- कुतर कर ।
चुपके- चुपके बिल्ली आती,
बच्चों का दूध पी जाती।
पूंँछ हिलाता मेरे घर पर,
श्वान देखता अपरिचित जन को ।
मकड़ी मेरे घर की रानी,
बुनती जाल कीट है खाती ।
छोटी चिड़िया बालकनी पर,
बच्चों को दाना चुंँगाती ।
सरपट चलाती दीवारों पर,
छिपकली से डरते हैं सब ।
मांँ भी मेरी प्यारी- प्यारी,
छोटी-छोटी बातें सिखाती ।
रचनाकार ✍🏼✍🏼
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।