बाल दिवस विशेष
जय माँ शारदे
बालदिवस विशेष
श्रम की भेंट चढ़ा है शैशव,कर में फावड़ा ओ पलरिया,
जले जब ज्ञान कि ज्योति हे विभु! छौनों से तब छिने कुदलिया।
कोस रहे हा!बाप महतारी,भेद घृणा खलु कालकूट विष,
सूना जगत, अमावस छाई,मिटे द्रोह की काल कुठरिया।
बाल-सुलभ नटखट पन खोया ,शैशव सी मुस्कान है कहाँ,
बांध विवशताओं के बंधन,खोजें कहाँ किलकारियाँ।
होठों से मृदु हास छिटकते, रव-रंजित मदिर कलरव गान,
चुलबुल और छिछोरी अनबन,मुग्ध-मोहिनी सी चिकोटियाँ।
वेदना-परिवेदना मुख से,हृदय हिलोरती याचनाएं
मृदामय कोष भीगे-भीगे,है क्षुब्ध मुखरित रागिनीयाँ।
चैन कि नींद किसे कहते हैं,बाल-सुलभ मन की मर्यादा,
स्वमेव मूर्ध जो बचपन है,स्मित भरे मुख की झांईयाँ।
क्षरित आघात सीकर जीते,धबक रहा मही कोख में है,
हा!दंश मयि चेतनाएँ ही,ओक भर रहा है कहानियाँ।
देख कर यूँ विपन्न बाल छवि,दिग्विमूढ़ मन-मति क्लांत है,
क्षुधा तृषा की वेदना सहित ,विह्वल-स्तब्ध मुख कांईयाँ
पय-प्रांजल से आँचल छूटे,घुंँघराली अलकें सिकुड रही,
कोमल-गात कठोर परिश्रम,हिय ज्वाल सुबकती सिसकियाँ।
©पाखी