बाल गीत -कहां खो गया बचपन मेरा
बाल कविता-कहां खो गया बचपन
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कहां खो गया बचपन मेरा,
अल्हड़ और भोला बचपन मेरा।
खाते, पीते, और खेलते,
नहीं कोई फिकर।
सारा दिन शैतानी करते,
पढ़ाई का नहीं कोई जिकर।।
मस्ती भरे वो दिन थे,
मगन होकर खुश रहते।
मां , पापा भी हम सब बच्चों से,
कुछ न कहते ।
बड़े ही प्यारे वो बचपन के दिन थे!
आज न जाने कहां खो गया
बचपन मेरा—-
याद आते हैं वो दिन,
जब गर्मी में छुट्टी होती।
दादी, बाबा प्यार है करते,
कभी न हमको डांट पड़ती।
मां, पापा से डांट की भी,
पूरी छुट्टी हो जाती ।
बड़े लुभावने वो बचपन के दिन थे।
ना जाने कहां खो गया बचपन मेरा—
गांव जाते जब हम सब,
दादी बहुत ही खुश हो जाती।
हम सब बच्चों को देखकर,
चैन से सो पाती ।
गले लगा हम सबको ,
प्यार से हे दुलारती ।
प्रेम भरी आंखों से हम सबको
निहारती ।
बहुत स्नेहिल वो भी बचपन के दिन थे।
ना जाने कहां गुम हो गया वो
बचपन मेरा——
आज तरसते हैं निश्छल प्रेम को,
जो अपनों से पाते।
चल की दुनिया में आज,
सभी है धोखा खाते ।
ना वो चाचा में प्रेम रहा,
और न ही चाची में।
सब बनावटी हैं रिश्ते।
आज न जाने कहां खो गया वो,
दिलों का अनमोल प्रेम ।
सभी दिखें झूठे रिश्ते
और छलिया प्रेम ।
ढूंढती हूं मैं न जाने कहां खो गया
वो मासूम ,भोला नन्हा सा
बचपन मेरा ——–
सुषमा सिंह *उर्मि,,