बाल कविता
बाल कविता
पंछियों को देख उड़ता
मै भी अब उड़ना चाहूं
पूछ रही हूं मैं मां से
पंख मैं कैसे उगाऊं
उड़ रही उड़न तश्तरी
पर नहीं हैं पंख दिखते
सुन सुन बाते वह मेरी
अम्मा के हैं दांत हंसते
कोई तो बोलो बताओ
मां को कैसे समझाऊं
पंख मैं कैसे उगाऊं
गोद में लेती वह झट से
खूब मुझको प्यार करती
लड्डू बरफी प्लेट में धर
खाने की मनुहार करती
कोई तो बोलो बताओ
मां को कैसे समझाऊं
पंख मैं कैसे उगाऊं
पहले तू हो जा बड़ी
अपने पैरों पर खड़ी
एक सुंदर शहर में जा
मैं तुझे पाइलट बनाऊं
कोई तो बोलो बताओ
मां को कैसे समझाऊं
पंख मैं कैसे उगाऊं
पंछी सा उड़ना चाहूं।
पंख मैं कैसे उगाऊं।