बाल कविता: बंदर मामा चले सिनेमा
बाल कविता: बंदर मामा चले सिनेमा
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बंदर मामा चले सिनेमा,
चार टिकट बनवाये,
एक खुद के लिए रखा,
तीन दोस्त बुलवाये।
चारों बैठे सीटो पर,
सबने हाथ मिलाये,
परदा चालू हो गया,
हल्के से मुस्काये।
मुँह में उनके पानी आया,
झट समोसे मंगवाये,
पकड़ा दौना चटनी डाली,
गपागप चटकाये।
ढिशुम- ढिशुम होते देख,
बंदर मामा कूदे,
जा चिपके परदे से,
सारे दर्शक रूठे।
सबने पकड़ा मामा को,
और बाहर फिकवाये,
गंदे कपड़े लेकर मामा,
वापिस घर को आये।
नानी बैठी आंगन में,
सारे हाल बताये,
बिठा गोद मे नानी बोली,
बेटा क्यों घबराये।
घर में टीवी लगवा दूंगी,
फिर ना बाहर जाये,
बंदर मामा इतना सुनकर,
ऊंची छलांग लगाये।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन