बालात्कार का दर्द
*** बालात्कार का दर्द ***
*********************
बालात्कार का दर्द,
पीड़िता से कहीं ज्यादा,
कौन समझ सकता है,
जिसके शुद्ध तन को,
अज्ञात, नापसंद वहशी,
स्वेच्छा और अनुमति बगैर,
नोच नोच कर गिद्ध की भांति,
अशुद्ध और अधमरा सा,
जिंदा लाश बना देता है,
खेल कर वासना का अंधा,
घिनौना और शर्मनाक खेल,
कर फूल से कोमल और
मलाई से नर्म अंगों को,
क्षत ,विक्षिप्त क्षतिग्रस्त,
जाँघों के बीच माँसलों पर,
कर के घातक से प्रहार,
गुप्तांगों को लहूलुहान,
दे कर जहर सा कड़वा,
कभी न मिटने वाला दर्द,
समाज की नजरों में बनाकर,
चरित्रहीन और बदचलनी,
और शांत कर निज अश्लील,
वासनात्मक इच्छाओं की पूर्ति,
दिखा के पौरुष की तीव्र स्फूर्ति,
भाग जाता है बीच बाजार,
अकेली बदहाल,बदहवान नार,
केवल जीने शेष बदनाम जीवन,
आखरी सांसों तक आजीवन,
करते हैं बड़ी बड़ी जज्बाती बातें,
महिलाओं के बड़े बड़े संगठन,
मर्यादा पुरुषोत्तम पुरुषों के समूह,
बना कर षड्यंत्र और चक्रव्यूह,
सियासतदार भी सेंक जाते है
सियासत की सियासी रोटियाँ,
खा कर पीड़िता की बोटियाँ,
दबा देते हैं बालात्कार के मुद्दे,
और दमन कय देते हैं,
पीड़ता का दर्द और भावनाएँ,
खत्म कर न्याय की संभावनाएँ,
आयोजित कर प्रयोजित,
संगोष्ठियाँ और सभाएँ,
छोड़ जाते हैं दुनिया के पटल पर,
भोगने को विवश कर उम्र भर,
आजीवन बालात्कार का दर्द….।
***************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)