बालमा ओ बालमा (विरह गीत)
विधा-रूपमालाछंद
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बालमा ओ बालमा जी,क्यों गये परदेश।
चार पैसे के लिए दिल,पर लगा कर ठेस।
हाय तेरी नौकरी से, छिन गया सुख चैन।
ढ़ूंढ़ते- फिरते तुम्हें ही नित्य पागल नैन।
रात पूनम की घिरी तो, संग लाई याद,
सर्प-सी डसने लगी है,आज उजली रैन।
वक्त ने हम से किया है, किस तरह का द्वेष।
बालमा ओ बालमा जी,क्यों गये परदेश।
रुग्ण है मधुमास सावन,सा बहे दृग रोज।
बावली-सी मैं तुम्हारी, कर रहीं हूँ खोज।
सेज सूनी नित चिढ़ाते, तुम नहीं जो संग।
टूट कर बिखरी हुई हूँ, खो दिया मुख ओज।
हैं फटी चुनरी हमारी,और बिखरे केश।
बालमा ओ बालमा जी,क्यों गये परदेश।
रात दिन तुमको पुकारूँ, सुन हमारी आह।
हाँ हमेशा से रही है, सिर्फ तेरी चाह।
वेदना से हत हृदय अब, हो रहा है राख,
आ हृदय से अब लगा लो,देखती हूँ राह।
देर से आये मिलेगा, तो नहीं अवशेष।
बालमा ओ बालमा जी,क्यों गये परदेश।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली