#बालदिवस :अब कहाँ वो बचपन….
मंच को सादर नमन ?? ?
बाल दिवस विशेष
शीर्षक :अब कहाँ वो बचपन….
अब कहाँ वो बचपन खिलौने, चहक,वो गुड्डे-गुड़ियों के सात फेरे।
पता नहीं क्यों अब कटता है ये बचपन हर दिन बेफ़िक्री को घेरे।।
वो भी एक दौर था न नफरत थी न धोखा,न ये बेवजह के थे पहरे।
हर तरफ सुकूँ की बारिश होती थी संग उम्मीदें ही थीं शाम-सवेरे।।
न बारिश का पानी,न काग़ज़ की वो कश्ती देती सुकूँ मन को मेरे।
आज बनावटी है ज़िन्दगी घिरी हर पल आशंका की हजार लहरें।।
ना अब वो बेफिक्री, वो कश्ती रही, सिर्फ हैं मासूमों पर कई पहरे।
कितने नन्हें-नन्हें दिलों में हैं आज, ज़माने के दिए ये घाव गहरे।।
नादानियाँ, शरारतें भूल कर बचपन होते हैं अब साजिशों से भरे।
छोटी सी उम्र में ही इन्हें अवसाद जैसी अनेक बीमारियाँ लेती घेरे।।
गरीबी की मार झेल समय से पहले समझदारी लेती मासूमों को घेरे।
विकृत मानसिकता समाज की बचपना रहता है दुश्वारियों से भरे।।
बारिश के पानी संग बहना था जिनको निश्छल,हैं किनारों पर ठहरे।
भटकते अंधेरों में घूम रहे हैं ये लगा झूठ, फरेब जैसे अनेक चेहरे।।
© ® उषा शर्मा
जामनगर (गुजरात)