बारिश
आकाश में छाए वारिधर
चल रही हैं प्रताप बयारे
क्षणप्रभा कड़क रही …
क्षितिज भी देखो गुर्रा रहें
वृष्टि की बूंदे छोटी- छोटी
गिरने लगी धराधर त्वरित
पाँख को नर्तकप्रिय फैलाएं
चित्ताकर्षक- सी करती वो
रहती अपनी नित्य भंगिमा
वर्षा में कैसी दिखती चित्र ?
जलाशय, पुष्कर, ताल में
जल ही जल भरे हुए रहते
विद्यमान तस हो जलमग्न
मेंढक खुशी-खुशी टर टराते
साथ ही मधुर – मधुर स्वर में
होते मग्न हर एक प्राणिवान
बच्चे – बूढ़े के संग किसान
बारिश से सब होते प्रमुदित
उच्चार झूम-झूम गिरे बयारे
लाती हरियाली बढ़ चली
चितवन की ओर ऊंघते
मुंह किए घटित ये घटाएं ,
फोटो भी खींच रहें कौन हुंकार ?
यह मौसम होता बड़ा मनोहर ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय बिहार