बारिश
बारिश की बूंदें गिरी, घिरी घटा घनघोर।
बिजली चमकी जोर से, मेघ मचाए शोर।।
मेरा मन तो चल पड़ा, खुले गगन की ओर।
खेलूँ बूँदों संग मैं, होकर भाव विभोर।।
छप-छप पानी में करूँ, और मचाऊँ शोर।
बादल से विनती करूँ, बरसो तुम चहुँ ओर।|
खेलूँ मैं बरसात में, ले कागज़ की नाव।
खिलखिल कर के हँस पड़े,मन के सारे भाव।।
इन्द्रधनुष की ये छटा, रंग बिरंगा गाँव।
नभ को देखूँ मैं जरा, जल में डाले पाँव।।
पेड़ों के पत्ते धुले,बुझी धरा की प्यास।।
बारिश की हर बूंद है, नव जीवन की आस।।
सिंह-वेधा सिंह