बारिश
बारिश की बूंदों की छम – छम कुछ
इस तरह से गुज़र गयी
मानों कोई नयी नवेली दुल्हन
की पायल से घर खनक गया ,
तिनका तिनका खिल उठा
मन का भी कोना-कोना भीग गया ,
मन हो आया इस बारिश
की सुंदरता पे रीझ के
कुछ तो शब्द लिखूं ,
हर बून्द मन को असीम
शांत आवरण देती है
चहुँ ओर धानी रंग चढ़ा ,
मन हो आया चिल्लाऊं –
मन हो आया चिल्लाऊं
अम्मा तुम तल लाओ पकौड़े
हम सब चाय संग खाते हैं ,
नभ अम्बर को एक करती
ये बारिश कहीं न कहीं
दिलों को भी एक कर जाती है |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’