बारिश
गरज रहे आज बादल फिर
बरस रहे आज बादल फिर
है आज मौसम बड़ा बईमान
याद आ रहा आज सनम फिर।।
है मौसम की ये बेइमानी
या कोई सुरूर छाया है कहीं
आ रही बारिश में भी मुझे
उसके पायल की आवाज़ कहीं।।
धरती को छोड़ा था बादल ने
उसका दुख मना रहा है शायद
अश्रु अब रुक नहीं पा रहे उसके
बारिश बनके बरस रहे है शायद।।
बारिश का इंतजार था
इस धरा की दरारों को
ढूंढ रही थी नई कोंपले भी
चंद बारिश की बूंदों को।।
गर्जना इन बादलों की
काफी डरावनी थी
खत्म होते ही बारिश के
हवाएं बड़ी सुहावनी थी।।
बादल की चाहत जो थी
वो धरती में समाने की थी
अब वो भी पूरी हो गई थी
धरती भी अब भीग गई थी।।
अब तो धूप खिल रही थी
हर तरफ उजाला दिख रहा था
दूर पहाड़ी पर जो घर था
अब वो भी साफ दिख रहा था।।