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11 Jun 2018 · 1 min read

बारिश से पुकार

धरा ने काले बादलों को पुकारा
झूम कर आया जो ललकारा ,,

फैली है सोंधी सोंधी खुशबू ,
हुई धूल जलबून्दों से रूबरू।

लगी रखी प्राणी जगत आस ,,
बुझा दे काले बादल सबकी प्यास।।

मैं ने बेजुबान पंछी को मरते देखा ,

प्यासे कण्ठ को तड़पते देखा।

हे बादल ,अपने साथ बदली ले
आ ,
जरा बेजुबान पंछी की प्यास बुझा

तू रिमझिम से नहीं जोर जोर से आ,
अपने साथ बयार को भी ले आ।

हवाओं में लहर बन चले आ
प्राणी जगत की जीवनदायिनी बन आ ।

यह तरु तेरे स्वागत में झूम उठे
अपने पत्तियों से ताली बजा उठे

फुहारों का समंदर ले आ
यह मन मयूर देखकर नाच उठा

काली काली इठलाती बदलियाँ ले आ ,
बिजली रानी को भी साथ ले आ ।

गढ़ गढ़ बरसात की फुहारें ले आ
ताल तलैया की प्यास बुझा ।।

पसीने से तर तर हो गया ताल
प्रवीण को फुहारों से नहाले आ ।

✍?प्रवीण शर्मा ताल
स्वरचित कापीराइट कविता
दिनांक /11/06/2018

Language: Hindi
442 Views
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