“बारिश में”
“बारिश में”
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बह्र-१२२२ १२२२ १२२२ २२
काफ़िया- आना
रदीफ़-बारिश में
गिराके चिलमनें मुखड़ा छिपाना बारिश में।
बनाती आशिकों को ये निशाना बारिश में।
अदा में शोखियाँ जुल्फ़ें लटकती नागिन सी
लिपट के लूटती जालिम ज़माना बारिश में।
चमकती दामिनी सी घात करती बादल में
दिखाके हुस्न जलाया दिवाना बारिश में।
सँभल के प्यार में चलना छलावा मुमकिन है
सुनाते घूमते मजनूँ फ़साना बारिश में।
मुझे ना तोड़ना इतना किसी से जुड़ जाऊँ
जुड़ा जो आसमाँ फिर तुम उठाना बारिश में।
वफ़ा की आड़ में तुम बेवफ़ाई करती हो
उजाड़ा दिल नहीं दूजा ठिकाना बारिश में।
तुम्हारी बेखुदी ने आज रजनी लूटा है
हुए रुख़सत सुनो अर्थी सजाना बारिश में।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज वाराणसी (मो.-9839664017)