बारिश बनकर सावन की
* बारिश बनकर सावन की *
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बारिश बन कर मैं सावन की,
बंजर धरती पर बरसात करूँ।
फूलों से हरा-भरा उपवन हो,
भंवरा बनकर मैं रसपान करूँ।
तन-मन प्यासा सा तड़फ रहा,
प्रेमी बनकर मैं प्रेमभाव करूँ।
तितली बनकर मैं उद्यानों की,
बालों का गजरा गलहार बनूँ।
पिपासा पपीहा प्रेम बूंदों का,
बादल बन कर मैं प्यास हरूँ।
प्रथम प्रेम पुरातन लकीरों पर,
आंचल का अंतिम प्यार बनूँ।
साजन बिन पगली बदली सी,
सिंदूर से सूनी मैं माँग भरूँ।
गम की पीड़ा से पीड़ित मन,
धैर्य बन कर मन धीरज धरूँ।
अलसूई सी कहीं खोई-खोई,
जीवन की नवरंग मैं राह रहूँ।
काँटों भरा गुलाब मनसीरत,
शूल चुभन से में सदैव डरूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)