बारिश को आने दो..
बीत गया है सावन,
सुखी नदी पड़ी है,
पपीहे की पीहू-पीहू,
देखो व्याकुलता की घड़ी है ।
बादल उमड़-उमड़ कहे, रुको अभी बरसुँगा ।
बारिश को आने दो, मैं तुम्हें पानी दूँगा ।।
डूब गया हूँ कर्ज़ तले,
फ़सलें भी हुई चौपट,
साहूकार का ब्याज़ चढ़ रहा,
मेरे घर की चौखट ।
अपने सर का भार, किस के सर रखूँगा ।
बारिश को आने दो, मैं तुम्हें पानी दूँगा ।।
फ़सल बेचकर कर्ज़ उतारूँ
इस वर्ष हमारे अरमान बड़े थे,
बिन पानी बरबाद हो गए,
फ़िर कर्ज़ लेने को तैयार खड़े थे,
करना सबका कल्याण,अब ये निश्चय मैं लूँगा ।
बारिश को आने दो, मैं तुम्हें पानी दूँगा ।।