बारिश की मस्ती
निकला था मैं मस्ती में,
बारिश की इक छुट्टी में
छाता लेकर चलता था
रेनी- शू भी पहना था
फुर्ती-चुस्ती से बढ़ता
बस्ती से बाहर निकला
मौसम ने पल्टा खाया
ऑंधी का झोंका आया
काले बादल छाये थे
भीषण वर्षा लाये थे
खूब अंधेरा घिर आया
मन ही मन मैं घबराया
छाता मेरा टूट गया
घुटनों तक मैं डूब गया
मुश्किल से मैं चल पाया
टूटा सा एक घर आया
उसमें घुस कर सुस्ताया
हिम्मत मेरी टूटी थी
मस्ती सारी भूली थी
हाथ जोड़ कर बैठा था
हनुमान को जपता था
यूँ ही घंटे बीत गये
दिल के तारे टूट गये
मन रोने का करता था
थक करके मैं सोया था
धूप यकायक चमक गयी
नींद अचानक टूट गई
इंद्र देव खुश लगते थे
सातों रंग बिखरते थे
दिल खुशियों से झूम गया
दुःख का सागर सूख गया
भूख, कष्ट सब भूल गया
वापस घर मैं पहुँच गया।