बारिश की बूंदों में तलाशती आँखें
जब भी बारिश होती है
मेरा मन भीग जाता है
जानते हो क्यों?
क्योंकि
तुम्हारे साथ बिताए वह पल
फिर से सजीव हो उठता है
बारिश की रिमझिम
फुहारों के संग
नजाने कितने वसंत
हमने साथ गुजारे थे
मुझे याद है……….
हर बारिश के बाद तुम
बालकनी में आकर बैठ जाते थे
और मैं तुम्हारे लिए
अदरक वाली चाय लेकर
आती थी
चाय की चुश्कियां लेते हुए
तुम कुछ रोमांटिक होकर
मुझसे
घंटों बतियाते रह्ते थे
और मैं तुम्हें
बस निहारती रहती थी
वक्त भी कितनी जल्दी
सरक जाता है न!
हमारे पौध भी अब
बड़े हो चुके हैं
सब अपनी दुनियां में मशरूफ है
लेकिन मैं
तुमसे बहुत नाराज हूँ
तुमने क्यों
अपना वादा नहीं निभाया
तुमने कहा था-
तुम्हारा साथ
मैं कभी नहीं छोडूंगा
फिर क्यों तुम
मुझसे मुंह मोड़ कर
चले गए
कभी न लौट न आने के लिए!
पर मैं आज भी
नजाने क्यों
इन बारिशो की बुंदों में
तुम्हें तलाशती रहती हूँ।
रीता सिंह “सर्जना ”
तेजपुर,असम।
©️®️
स्वरचित मौलिक@