बारिश की फुहार
बारिश की फुहार
*************
बारिश की फुहार,
धो डालती है,
फूल,पत्ती,पेड़ों पर जमीं धूल,
तरोताज़ा शुद्ध हो जाती है आबोहवा,
जो काम करती है बन कर दवा,
मिटा देती है मानव की,
तन-मन की बीमारियाँ,
लेकिन मौकापरस्त है मानव जात,
जी तोड़,जी खोल कर ऐसे काम,
जिससे प्रदूषित हो जाता है,
पर्यावरण,वातावरण तमाम,
फिर से जम जाती है,
धूल-मिट्टी और धुएँ की परत,
फिर से होता है इंतजाम,
कब दुबारा आएगी बारिश की फुहार…।
**********************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)