बिरह बरस रहा है
?
* * * बिरह बरस रहा है * * *
तेरी यादों की शबनम अलसायी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती बल खायी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती . . . . .
हसरतों मुहब्बतों शिकस्तों को जोड़कर
इक दुनिया नयी बसायी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती . . . . .
जादूगरी यह देख दर बना दिया दीवार में
कलम मेरी तूफान में जोश पर आयी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती . . . . .
बिछुड़े हुए मिले फिर मिलकर बिछुड़ गये
बनी न बात बात बनायी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती . . . . .
हवाएँ चैत मास की खुशमिज़ाज हैं
प्रीत पीर की पायल पाँव पहरायी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती . . . . .
मेरे लिए नहीं हैं ये बहारें ये रौनकें
सिसक रही अभी तक तेरी कसम खायी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती . . . . .
अब के बरस चाँद भी माँद माँद है
बिरह बरस रहा है चाँदनी नहायी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती . . . . .
नंगा अकेला तिनका आख़िर में बच रहा
ठंडी मीठी शै चाट – चाट खायी हुई
दिल की नाज़ुक पत्ती . . . . .
-वेदप्रकाश लाम्बा ९४६६०-१७३१२