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21 Feb 2024 · 1 min read

बाबू

ज़रा नज़र – ए – इनायत फरमाइये बाबू
कहाँ दूर बैठे हैं यहाँ आइये बाबू ।।

सुना है नज़ारों के बड़े शौक़ीन हैं
हमे भी एकाध झलक दिखलाइये बाबू ।।

कब तक ख़ामोशी से बैठे रहेंगे हम
हमसे भी दो हर्फ़ बुलवाईये बाबू ।।

हमने तो समझौता कब का कर लिया
आप अपने मन को समझाइये बाबू ।।

आप बड़े हैं आपके हज़ारों हाथ
उंगलियाँ हमारी न कटवाईये बाबू ।।

बड़ी ऊंची हो गयी है जगह आपकी
लाशों के ढेर अब फिंकवाईये बाबू ।।

हवा का रुख़ कुछ ठीक नहीं लगता
करिये ग़ौर सम्भल जाइये बाबू ।।

अजय मिश्र

Language: Hindi
1 Like · 106 Views
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