बाबुल
शीर्षक – बाबुल
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बाबुल के साथ-साथ बचपन बीता है।
बचपन के बाद जवानी बाबुल का आंगन सुना है।
खुशनसीब बाबुल बिटिया को विदा किया हैं।
जीवन और जिंदगी के रंगमंच पर बाबुल जीया हैं।
आज अपना ही बाबुल का घर पराया हैं।
एक सच और यादों के पल बाबुल के होते हैं।
नाज़ नखरें हमारे बाबुल के घर ही रहते हैं।
बाबुल का नाम ही बस याद रह जाता हैं।
समय और हम पता नहीं कब बाबुल छूट जाता हैं।
सच और सोच क्या रीति-रिवाज बाबुल कहते हैं।
बाबुल का घर न अब पराया हो ऐसी सोच हैं।
बाबुल और बिटिया का सच बताना है।
बिटिया को तो बाबुल का नाम बताना है।
सच तो बाबुल का सपना साकार करना हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र