बाबुल मैं तेरे सिर की पगड़ी
बाबुल मं तेरे सिर की पगड़ी
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बाबुल मै तेरे सिर की पगड़ी,
पगड़ी का सम्मान बढ़ाऊंगी,
तेरे ही तो आंगन की गुड़िया,
हर हाल मैं फर्ज निभाऊंगी।
तेरे सी तो साये की परछाईं,
कभी नहीं करना मुझे पराई,
कुछ न मांगू तुझ से बाबुल,
भूखे पेट ही मैं सो जाऊंगी।
हाथ जोड़ करूं अराधना,
गर्भ के अंदर हमें न मारना,
तुम्हारे कुल की मैं मर्यादा,
मिट्टी में कभी न मिलाऊंगी।
बाप को होती प्यारी बेटियां,
नेह की भूखी बेचारी बेटियां,
चुपचाप सबकुछ सह लूंगी,
जरा भी नहीं मैं घबराऊंगी।
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जब बेटे तेरे हो जाएंगे न्यारे,
छोड़ जाएंगे तुम्हे तेरे सहारे,
संपत्ति में भी न मागू हिस्सा,
तेरे गम बांटने चली आऊंगी।
मनसीरत क्या है रीत बनाई,
दो घर की हो कर भी पराई,
कोई तो हमें मान लो अपना,
हर बंधन में मैं बंध जाऊंगी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)