दो कुण्डलिया जीवन पर
1
जीवन के हर मोड़ पर, बाधाओं के गॉव
हँस कर इनको पार कर, रोक नहीं तू पाँव
रोक नहीं तू पाँव, परीक्षा है ये तेरी
कर लेगा यदि पास, मिलेगी छाँव घनेरी
कहे ‘अर्चना’ बात, टूटने मत देना मन
होता ही है धूप, छाँव जैसा ये जीवन
2
धीरे धीरे चुक रहा,साँसों का भंडार
बीत गये दिन फूल से, अब ज्यादा हैं खार
अब ज्यादा हैं खार, बुढापा लगता दुश्मन
खालीपन का साज, बजाता रहता ये मन
भवसागर है पास, आ गये हैं अब तीरे
चलो ‘अर्चना’ पार,करें ये धीरे धीरे
8-12-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद