बादल
बादल
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बादल तू क्या पागल है ?
जो धर्म, जाति
और देश को
जाने बिना बरसता है ।
मूरख कुछ सीख
इंसान से
जो धर्म में बँटा
जाति में बँटा
स्वार्थों का पुलिंदा है ।
वो सबसे बुद्धिजीवी है
फिर भी
जान नही पाता
क्यों और किसलिए
वो ज़िन्दा है ।
बादल ! समझ
बरस उस जमीन पर
जो तेरे धर्म की हो
जाति की हो
जो तेरे कृत्य पर
वाह वाह करे ।
ढूंढ ले तू भी अपना धर्म
बना ले अपनी कोई जाति
क्योंकि
वर्तमान में
इन्ही का जोर है ।
जल्दी कर
वरना सियासतदानों
की सत्ता-हवस में
तू भी
राजनीति का माध्यम बन जायेगा ।।
—☺️ पारस शर्मा”मसखरा”
झालावड़ ( राजस्थान )