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15 Jun 2021 · 1 min read

बादल

आज बारिश की बूंदें मेरे तन पर पड़ी
याद आ गई मुझको अपनी बीती घड़ी

समय से पहले मै उस जगह आ चुका था
मोहब्बत में उस दिन बादल भी झुका था

इंतजार में तुम्हारे था निगाहें बिछाए
हर तरफ लोग दिखते ना मन में समाए

अचानक से आई एक आहट तुम्हारी
दिखी एक झलक और मुस्कान प्यारी

मै उठ कर तुम्हारी तरफ यार धाया
तुमसे मिलकर तुम्हें घड़ी को दिखाया

चले साथ हम तुम यूं हाथों को पकड़े
कोई जंजीर जैसे हम दोनों को जकड़े

मंच कैडवरी हमने तुमको खिलाया
हमे तुमने मोहब्बत से पानी पिलाया

कुछ बातें हुई फिर गले हम मिले
हमें देखकर मेघ के दिल जले

वो आंखें दिखा कर हम पर चिल्लाए
एक छतरी में हम तुम खुद को छुपाये

लगे ऐसे जैसे बरसात का महीना
फिर भी आने लगा दोनों को पसीना

ना हमको वहां फिर कोई भी पुकारे
झम – झम बरसते थे बादल बेचारे

नहीं भूल सकता वो बरसात प्यारी
इन निगाहों में छाई तुम्हारी ख़ुमारी

आ जाओ हमदम यह ज्योति फिर पुकारे
मै जिंदा हूं अब तक बस तुम्हारे सहारे

ज्योति प्रकाश राय

1 Like · 1 Comment · 350 Views

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