बादल
मैं तो बादल हूं
बरसता हूं तो
भिगो देता हूं
ना भी बरसुं
तो छाया देता हूं
सफेद काले रंगो में
नीले नभ में
स्वछंद विचरण
करता हूं
जितना ऊपर जाता हूं
उतना ही पानी से
भरता जाता हूं
बारिश बर्फ के रूप में
धरती पर जब
गिरता हूं
बीज अंकुरित कर
नव जीवन देता हूं
खेतों में गिर कर
अन्नदाता की फसलों
को लहलहाता हूं
नदियों के यौवन को
महकाता हूं
पहाड़ों पर सफेद
बर्फ की चादर
बिछाता हूं
प्रेमियों को तड़पता हूं
प्यास मिलन की
जगाता हूं
एक जगह मैं न
ठहर पाता हूं
अंत में बारिश
बनकर खुद को
मिटा जाता हूं।।