” बादल या नैना बरसे “
गीत
बरसी बून्द सहेजा करते ,
बादल या नैना बरसे ।।
अँधियारा जब जब गहराता ,
है प्रकाश धुंधलाया सा ।
कैद नज़र जब बाहर झाँके ,
मन थोड़ा घबराया सा ।
उम्मीदों की किरण जागती ,
भीगे पल हों कुछ तर से ।।
एकाकी जीवन के पल में ,
मन व्याकुल हो जाता है ।
बरसी बदली दे शीतलता ,
पवन जरा बहलाता है ।
खोल हथेली , पल समेटते ,
गुमे नहीं बस , इस डर से ।।
बून्द बून्द से घट भरता है ,
भर जाते नद सागर भी ।
बून्द बून्द बरसाते बादल ,
काली ताने चादर भी ।
इंद्रदेव ने धनुष तानकर ,
छोड़े हैं अनगिन शर से ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )