बादल भी आज टूट कर रोया है
गरज कर गिर पड़ी बिजलियां
बादल भी आज टूट कर रोया है
तुमने देखा नहीं तो क्या हुआ “जाना”
हमने भी आंखों को खूब धोया है
धूलि आंखो के सुर्ख आंगन में वस्ल के
ख़वाब ने तेरे नाम का चन्दन बोया है
ख्वाब के आंगन में मैं अकेली तो न थी
सुबह तलक ख्वाब हमने साथ बोया है
~ सिद्धार्थ