बादल बरखा कब लाओगे
बादल नभ पर कब छाओगे?
बोलो कब प्यास बुझाओगे?
सूरज ने सोख लिये सागर,
ये धरती जल बिन सूखी है,
फूलों में भी मकरंद नहीं,
जलकुंभी कब से भूखी है।।
पानी की शीतल बूंदों से,
प्राणों को कब नहलाओगे?
नभ पर मेघा ना मँडराये,
बूँदें बरसाना भूल गये ।
धरती बैठी शृङ्गार बिना,
मादकता लाना भूल गये।।
आहत हैं मोर चकोर सभी,
कब तक सबको तड़पाओगे।
कब छाओगे बादल काले,
कब बरसोगे ओ मतवाले।
पौधों की क्यारी सूखी हैं,
कब उफनेंगे नद के नाले।।
हलधर भी बैठा आस लिए,
बोलो जल कब बरसाओगे।
जगदीश शर्मा सहज