!!** बलखाते बादल **!!
!!** बलखाते बादल **!!
काले बादल, भूरे बादल अम्बर में इतराते बादल,
अपनी मस्ती में रहते हैं इधर-उधर मंडराते बादल।।
कैसे-कैसे रूप बनाते
कभी डराते कभी हंसाते
आपस में जब वे टकराते
आवाजें कर हमें डराते
कभी घटा बन छा जाते हैं
बारिश की बूंदें लाते हैं
पल-पल रूप बदलते रहते अम्बर में इठलाते बादल,
भिन्न-भिन्न आकार बनाकर धरती को दिखलाते बादल।।
काले बादल, भूरे बादल …………………………………।।
धरती बरखा से कहती है
तपिश भरी मुझमें रहती है
बड़े दिनों के बाद तू आती
गर्मी से छुटकारा पाती
सौंधी-सौंधी खुश्बू आती
मन ही मन मैं भी हर्षाती
जलजला कहीं, कहीं बाढ़ बहुत घनघोर घटा लाते बादल,
धरती जलहीन, अकाल कहीं ऐसे दिन दिखलाते बादल।।
काले बादल, भूरे बादल …………………………………।।
वे चातक की प्यास बुझाते
पपीहा को पी से मिलवाते
प्रेम अगन भी वही लगाते
तटबंधों को वे तुड़वाते
तीज़ और त्यौहार ले आते
सावन में राखी बंधवाते
हर-हर बम-बम के नारों संग महादेव पुजवाते बादल,
झूला डाली पर लगवाकर कजरी गीत सुनाते बादल।।
काले बादल, भूरे बादल …………………………………।।
समय कठिन है मत घबराओ
लड़ने की ताकत ले आओ
बुरा वक्त है छँट जाएगा
अच्छा दिन फिर से आएगा
आओ मेघ-मल्हार सुनें हम
बारिश में कुछ स्वप्न बुनें हम
“दीप” उठाकर नयन जो देखो अम्बर में बलखाते बादल,
हरी-भरी धरती कर जाते ग़म को दूर भगाते बादल।।
काले बादल, भूरे बादल …………………………………।।
दीपक “दीप” श्रीवास्तव
महाराष्ट्र