“बादल”️
“बादल”
☁️☁️
ये बादल, कहां से आता है;
कभी मंडराता है, तो कभी,
कहीं भी, बरस के जाता है,
कभी ये , सूरज को छुपाता,
कभी , सूरज से मिट जाता ,
ये बादल, कहां से आता है।
दिखते हैं, ये कभी काले तो,
कभी ये दिखते , बहुत गोरे।
कभी होते, बहुत ही ज्यादा ;
तो कभी दिखते बहुत थोड़े।
लेकिन हैं ये , जरूर भगोड़े;
ये बादल , कहां से आता है।
कभी खुद , हवा से डरता है ;
तो कभी , गरज के डराता है;
या बिजली बन गिर जाता है
,
ये बादल , कहां से आता है।
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…..✍️ पंकज “कर्ण”
……….. कटिहार।।