बादलों पर घर बनाया है किसी ने…
बादलों पर घर बनाया है किसी ने।
चाँद को फिर घर बुलाया है किसी ने।
भावना के द्वार जो गुमसुम खड़ा था,
गीत वो फिर गुनगुनाया है किसी ने।
आँधियों में उड़ गया जो खाक होकर,
नीड़ वो फिर से सजाया है किसी ने।
चीरकर गम-तम उजाले बीन लाया,
मौत को ठेंगा दिखाया है किसी ने।
चार दिन की चाँदनी कब तक छलेगी ?
ले तुझे दर्पण दिखाया है किसी ने।
आजमाता जो रहा अब तक सभी को,
आज उसको आजमाया है किसी ने।
दोष सारे आ रहे अपने नजर अब,
आँख से परदा हटाया है किसी ने।
बिजलियाँ उस पर गिरी हैं आसमां से,
दिल किसी का जब दुखाया है किसी ने।
जुल्म अब होने नहीं देंगे कहीं हम,
आज ये बीड़ा उठाया है किसी ने।
गूँजता अब हर दिशा में नाम उसका,
काम ऐसा कर दिखाया है किसी ने।
आ रही ‘सीमा’ लहू की धार रिस कर,
देश हित फिर सिर कटाया है किसी ने।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )