बादलों का फिर से घिर आना
बादलों का फ़िर से घिर आना,
पीछे सूरज का यूँ छिप जाना,
फ़िर टिम-टिम पड़ती बारिश से,
मुझे वो दिन याद आते हैं ।
कभी रुक-रुक कर पड़ना,
क़भी घनघोर बौछारों में बहना,
फ़िर चिलकती धूप में छपाक से,
पुरानी यादों को दोहराते हैं ।
मदमस्त होकर मोर का नाचना,
देख बादल पपीहे का शोर मचाना,
पंछियों का हाव-भाव बदलने से,
तेरे बदलने की मुझे याद दिलाते हैं ।
बेमौसम तेज़ बारिश की तरह,
कहर बरपाती बिजली की तरह,
डर-डरकर मैंने सीखा है जीना,
मेरे डरने को वो हथियार मानते हैं ।