बात हो मुफ़लिसी हटाने की।
गज़ल
2122…….1212……..22
दीन दुखियों के मुस्कुराने की।
बात हो मुफ़लिसी हटाने की।
जिनके खूँ से बनी है ये दुनियाँ है,
बात हो उनका घर बनाने की।
उनका भी हक है प्यार पाने का,
बेरुखी क्यों है ये जमाने की।
लोग देखेंगे ख़्वाब दुनियाँ के,
फिक्र है उनको जीने खाने की।
देखकर साथ माँ व बच्चों को,
याद आई है घर को जाने की।
जो खिलाते हैं देश को सारे,
बात करिए भी उन किसानों की।
मरते जो शीत ताप में उनके,
बात है आज आशियाने की,
वो भी इंसान हैं बनो प्रेमी,
बात करते हैं दिल मिलाने की।
…….✍️ प्रेमी