बात हमारी कड़वी लग सकती है
बात हमारी कभी कभी कड़वी लग सकती है
शब्द हमारे सच्चाई हैं, चुभने लगते हैं।
हमने कहा घमण्डी का सिर नीचा होता है
विनयशील ही इस दुनियाँ में ऊंचा होता है
हमने कहा शिष्ट बन जाओ पाँव भूमि पर रहने दो
हमने कहा कहो तुम अपनी और हमें भी कहने दो
हमने कहा जला डालेगी लालच की चिंगारी है
हमने कहा महत्वाकांक्षा तो तलवार दुधारी है
“दुनियाँ जीतें” कुछ की ये हसरत हो सकती है
सुनकर हस्र सिकंदर का कुछ लोग संभलते हैं।
हमने कहा दिया जो रब ने खुश रहने को क्या कम है
हमने कहा “पड़ोसी खुश” तो इसका तुझको क्या गम है
औरों की पीड़ा अपनाओ सबसे अच्छा मरहम है
“जियो और जीने भी दो” सिद्धांत यही सर्वोत्तम है
सबके हैं अधिकार बराबर निम्न न कोई मध्यम है
घृणा कपट से भरे दिलों की श्रेणी सिर्फ निम्नतम है
उसे किसी से भी कैसे नफरत हो सकती है
बिना भेद के भाव हृदय में जिसके पलते हैं।
संजय नारायण