बात बेबात ही ललकार की बातें करना
बात बेबात ही ललकार की बातें करना
क्यों तुझे भाये है तलवार की बातें करना
उनको भाता नहीं परिवार की बातें करना
मुझको आता नहीं बेकार की बातें करना
गालियां बकते हैं रातों में शराबें पीकर
उनसे दिन में भी नहीं प्यार की बातें करना
संस्कारों की अलिफ़-बे नहीं सीखी जिसने
इल्तज़ा है न उस मक्कार की बातें करना
लाख हो जाए खफ़ा मुझसे जमाना बेशक़
मैं न छोडूंगी मगर यार की बातें करना
आज उद्योग ये संदिग्ध नज़र आते हैं
छोड़िये-छोड़िये अखबार की बातें करना
मेरा पैग़ाम मुहब्बत है ” कँवल ” कहती है
दोस्तो ! मुझसे न तक़रार की बातें करना