बात जुबां से अब कौन निकाले
पल पल बढ़ती उम्र सी हसरत
यही तो दुख का बीज है हजरत
दिल मे सबके छ्प जाने की चाहत
कर दे खुद से जुदा होने सी हालत
बैठे कब तक रहे यूं मुस्कान चिपकाए
दिल की आवाज कब दिल को दे सुनाए
जमी पकडे है पैर जकड कर
नज़र तलाश रही ऊंचा जंहा
कि हाथ मचलते है परो से
बस पा ले मुठ्ठी भर आसमान
शिकवा अब ना कोई शिकायत
प्यार बिना यह है बस हिमाकत
जाने दूर का जो ख्वाब हो पाले
मुझसे बेहतर तुम्हे कौन संभाले
कहा है दिल से एक दिल ही सुनले
बात जुबां से अब कौन निकाले
संदीप पांडे”शिष्य” अजमेर