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29 Jun 2024 · 1 min read

बात चली है

गीतिका

जाने कैसी बात चली है ।
सहमी-सहमी बाग़ कली है ।

जिन्दा होती तो आजाती,
सायद बुलबुल आग जली है ।

दुख का सूरज पीढ़ा तोड़े,
सुख की मीठी रात ढली है ।

नींद कहाँ बसती आँखों में,
जब से शक की दाल गली है ।

महक उठा आँगन खुशियों से,
जब-जब माँ की बात चली है ।
000
अशोक दीप
जयपुर

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