बात ऐसी बिगड़ी कि फिर बनी ही नहीं
वो रूठा तो उसने मेरी सुनी ही नहीं
बात ऐसी बिगड़ी कि फिर बनी ही नहीं
वादा निभाने वाले मुश्किल से मिलते हैं
वादे करने वालों की कोई कमी ही नहीं
वह मुझसे बिछड़ने का ग़म क्यूं करेगा
जब मेरे मिलने की उसको खुशी ही नहीं
मेरी नज़रो से मिलकर जब जब झुकी
उसकी नजर फिर शर्म से उठी ही नहीं
तुम से बिछड़ कर हम जीते भी तो कैसे
तुम्हारे बाद ज़िन्दगी कुछ बची ही नहीं
ग़म में ही रोते है ग़म में ही हंस लेते हैं “अर्श”
खुशी क्या चीज़ है हमने कभी देखी है नहीं