“बातों की, बात में◆साहस का एकीकरण”
सहसा,
साहस का एकीकरण,
बातों की, बात में,
लच्छेदार, चित्रकारी,
चित्रकारी में,
शब्दों के पुष्प,
शब्दों की सुबह और शाम,
खिलने और बन्द होने की,
प्रक्रिया अनवरत चलती हुई,
द्योतक है विकास की,
अनवरत धारा,
जो शिखर से,
प्रकट होकर,
विस्तार में प्रवाहित,
न किसी का आसरा,
न कोई भय,
स्थिर नहीं है,
उसकी भी गरिमा है,
जो है अद्भुत,
अलंकृत है,
सुभाषित है,
मनोहर है,
वह स्वाधीन है,
वह चुनती है,
अद्वितीय,निर्मल,
साहस का एकीकरण,
सहसा।।
©अभिषेक पाराशर