बातें चांद से
मैंने पूछा चांद से क्या हाल है जनाब??
खैरियत तो है सब,क्या प्रसन्न हैं आप?
घर भी होगा आपका अब तो साफ़,
चांद ने कहा जड़ा चुप भी करो,
सर्वार्थी नहीं हम तुम मानवों कि तरह,
तनहाई में देखकर तुम्हें हम भी हो गए तनाह,
मन नहीं लगता हमारा इस शांत माहोल में,
चित ना रमता किसी में बिना मुख देखें तुम्हारे,
चांदनी से भी जड़ा हो गई खटपट,
तुम लोगों के चक्कर में आग लगी मेरी ग्रहस्थी जीवन में,
कहती हैं मैं हूं ना किसी काम का,
औषधि ना दे पाया तुम्हें, फिर कैसे रखूंगा उसका खयाल?
जब तक मनुवंशो ना हो जाए खुश,
तब तक अपना मुख ना देखाना मुझे,
अब बताओ,
मर्ज़ क्या पेड़ पर उगते??
तुम्हारे चक्कर में देखो मेरा क्या हाल हो गया,
दर दर भटकने पे मजबूर हो गया मैं,
रहने दो तुम्हारे हाल में बाद में सुनूंगा,
अभी तो कान पकड़ने अश्विनी कुमार के
बरना तुम्हारे चक्कर में मेरी ग्रहस्थी में पुर्नविराम लग जाएगी,
अभी करो दुआ भगवान से कि कैसे भी जान बचे तुम्हारा
और
हमारा भी