बाती
दीप आज
जल न पाया
बुझ न पाया,
रोशनी भी दे न पाया
कसमसाया
फ़कफ़काया
खो गयी है कौन, उसकी
सिर्फ बाती।
खा गयी उसको
रूपहली
निष्ठुर सी,
अमावस की सखी
अब एक प्रेयसी
लौ दिया की।
हो गयी
पतिता,
निराश्रित सी,
ले रूप अब छोटा,
बिचारी
आज बाती।
दीप आज
जल न पाया
बुझ न पाया,
रोशनी भी दे न पाया
कसमसाया
फ़कफ़काया
खो गयी है कौन, उसकी
सिर्फ बाती।
खा गयी उसको
रूपहली
निष्ठुर सी,
अमावस की सखी
अब एक प्रेयसी
लौ दिया की।
हो गयी
पतिता,
निराश्रित सी,
ले रूप अब छोटा,
बिचारी
आज बाती।