बाण वाणी के यहाँ हैं विष बुझे
बाण वाणी के यहाँ हैं विष बुझे
है उचित हर आदमी अच्छा कहे
भूले से विश्वास मत तोड़ो कभी
ध्यान हर इक आदमी इसका धरे
रोटियाँ ईमान को झकझोरती
मुफ़लिसी में आदमी क्या ना करे
भूख ही ठुमके लगाए रात-दिन
नाचती कोठे पे अबला क्या करे
ज़िन्दगी है हर सियासत से बड़ी
लोकशाही ज़िन्दगी बेहतर करे