बाजार
बाजार अक्सर भीड़ से भरे थे
वे बाजार थे सायद इसलिए भरे थे
जरूरतों से भरी और भी दुकानें थी मगर वे दूरदराज में वीरान पड़ी थी
लोग आते थे मगर जब जरूरत कद से बड़ी थी
भूल जी जाते बहुत शीघ्र
क्योंकि आदत बड़ी थी
नारजगी कैसी
किसको किसकी पड़ी थी
भीड़ में और भीड़
किसको सुकून की पड़ी थी
प्रद्युम्न अरोठिया