बागबाँ हो जाता है
पढ बच्चन की मधुशाला मन बागबां हो जाता है
पढ बच्चन की मधुशाला ख्याब नया मैं बन जाता है
पी बच्चन की मधुशाला भाव विभोर मैं हो जाता हूँ
पी प्याला युग जुग प्यास और सबमें जग जाती है
आज एक नूतन मधु शाला मैं भी तेरे लिए गढता हूँ
पिला पिला कर रस प्याला सराबोर मैं करता हूँ
ऐसी पिपासा से उन्मुक्त सदा के मै तुझे करता हूँ
भूल जाऐगा तू जाना अब जाना हमेशा शराब शाला।