बांटो और राज करो
ये जाति-धर्म के नाम पर
देश-समाज का बंटवारा
हमें नहीं गवारा, साथी
हमें नहीं बिल्कुल गवारा…
(1)
जनता अपने दुश्मनों को
आख़िर कब तक पहचानेगी
समझदार के लिए काफी
होता है बस एक इशारा…
(२)
एक भरे-पूरे शहर को
करने के लिए नेस्तनाबूद
कौन बिछा रहा बारूद
कौन फेंक रहा अंगारा…
(३)
लिख दो जाकर दीवारों पर
तुम लोहिया का पैग़ाम यह
अगर सड़कें ख़ामोश हुईं,
संसद हो जाएगी आवारा…
(४)
हुक़्मरान कैसे हो गए
हमारे लिए इतने अज़ीज़
उनके चक्कर में भूल गए
हम आपसी भाईचारा…
Shekhar Chandra Mitra
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